पितृ पक्ष एक ऐसा पक्ष है जिसे हिन्दू धर्म में पितरो की पूजा की जाती है , यदि आपको पता नहीं हो की पितर क्या होते है तो आपको बता दे की हमारे दादा , दादी , या उनसे भी पहले हमारे परिवार के सदस्य जिनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है। उनकी अप्रसन्नता में हम जीवन में सुख , समृद्ध नहीं रह सकते इसलिए उनको प्रसन्न करने के लिए बहुत सारे उपाय करते है। पितरो को प्रसन्न करने के लिए आप (Pitro Ko Prasann karne Ke Liye Padhe Ye Stortra) इस स्तोत्र का नियमित पाठ कर सकते है।
पितरो को प्रसन्न करने के लिए इस स्तोत्र पाठ करे ( Pitro Ko Prasann karne Ke Liye Padhe Ye Stortra Stuti)
पितृस्तोत्र (Pitra Stotra) हिन्दू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मंत्रों का संग्रह है। इसे श्राद्ध, तर्पण और अन्य पितृकर्म के समय पढ़ा जाता है। पितृस्तोत्र का पाठ करने से पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह स्तोत्र उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। पितृस्तोत्र पढ़ने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि जीवित परिवारजनों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक बल भी बढ़ता है।
।। अथ पितृस्तोत्र ।।
1- अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ।।
2- इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् । ।
3- मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।
4- नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।
5- देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।
6- प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।
7- नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।
8- सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।
9- अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।
10- ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय: ।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस: ।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।
।। इति पितृ स्त्रोत समाप्त ।।
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